Friday, June 18, 2021

रिश्ते - टेक 2

 जिन्दगी छोटी सी है, और महामारी ने और कुछ नहीं तो ये तो सभी को सिखा दिया है। ऐसे में रिश्ते संभालकर रखना एक बात है और  उन रिशतों से आज़ाद होना जो अपको खोखला कर रहें हैं दूसरी बात और वो रिश्ते बनाना जो आपको खुशी दे रहे हैं तीसरी। 

पिछले दो साल में वैसे तो कई डिवोर्स हुए लोकिन जो याद रह गए और सवाल खड़े गए वो थे दो सबसे अमीर दंप्त्ती के डिवोर्स। इनहोंने ने अपनी 25 - 25 साल पुरानी शादियों को अलविदा कहा। 2019 में जैफ बीजोज़ और मेकिंज़ी स्कॉट और 2021 में बिल गेट्स और मिलिंडा गेट्स। क्या हुआ ऐसा? और जो हुआ क्या वो सालों से चल रहा था? और 25 साल क्यों लग गए एक दूसरे का साथ नहीं निभा पएंगे ये समझने में। 

हमारे देश में तो माता पिता शादी ही ये कह के करा डालते हैं की बुढ़ापे का साथ तो चाहिए, हम नहीं रहेंगे तो किसके साथ रहोगी। कुछ ऐसे अजीबों गरीब तर्क के बीच हम शादी कर लेते हैं। 

मुझे लगता है शादी के लिए कभी भी कोई भी पूरी तरह तैयार नहीं होता। शादी के बाद जिंदगी क्या मोड़ लेगी, किस राह पर चल देगी, अपने दोस्त, अपने सपने, अपने अपने कैसे छूटते चले जाएंगे इसका अंदाज़ा भी नहीं होता। फिर आप उस राह निकल जाते हैं जहां से मुड़ना मुशकिल या नमुमकिन हो जाता है। 

शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा इन बड़ी बड़ी हस्थियों के साथ भी। समाज और जिम्मेदारी के दायरों में ऐसा चर्कव्यूह बनता है की उससे ये लोग निकल भी गए, सेंकड़ों ऐसे हैं जो निकल ही नहीं पाते। 

तो क्या हम एक comfort zone में चले जाते हैं। जहां सिर्फ भोतिक सुख मायने रखते हैं। चीजें, सामान, खाना पीना, लोगों के सामने साथ दिखना इतना आसान हो जाता है। लेकिन अंदर ही अंदर दूरीयां घर कर चुकी होती हैं। ऐसे रिश्ते सिर्फ किसी बड़ी वजह से ही चलाए जा सकते हैं। एक बार की बात है, मैं अपनी एक सहेली से इस पर बात कर रही था। उसका सवाल आज भी मेरे ज़हन में छपा है। किसी के साथ हम जीवन जीने का वादा करते हैं, लकिन अगर वो इंसान अगर मेरी किसी भी ज़रूरत के लिए ज़रूरी नहीं तो मैं उसके साथ क्यों हूं। शारीरिक ज़रूरतें खत्म हो जाती हैं, पैसा आज लड़का हो या लड़की सभी कमा रहे हैं, यहां सबसे अहम होती है emotional जरूरत। प्यार से बस हाथ थाम लेना, कभी मिल कर गले लगा लेना, बातें करना और सुनना, साथ में गाने गाना, साथ में खुले आसमान के नीचे लेट कर तारे गिन्ना। नहीं ये सब फिल्मी नहीं है। इस तरह के प्यार और जज़बे की ज़रूरत होती है एक रिश्ते को। 

एक ऐसा रिश्ता जिसमें आज़ादी हो, साथ हो ....चाहे चुप हों मगर एक साथ हों....एक एहसास हो....सूकून और प्यार हो।     

Monday, May 31, 2021

प्यार और बंधन


मौसम विभाग ने हमारे शहर में सिर्फ हलके बादल का बोला था। लेकिन यहां खुल कर बारिश हूई। गर्मी से झुलसी प्यासी धरती पर बारिश की हर बूंद प्यार बन बरसी। एक सौंधी की खूशबू आई और फिर धरती बारिश में डूब गई। मानों उसे पानी से और पानी को उससे प्यार हो गया हो। लेकिन ये बारिश बंद होगी, धरती कुछ समय तक नम होगी। फिर उपर से सूख जाएगी और प्यार इसके अंतर में बसेगा। उस प्यार से कई जीवन सींच जाएगी ये। 

प्यार ऐसा ही होता बिना चेतावनी कब, कहां, कैसे और किससे हो जाएगा ये आप नहीं बता पाएंगे। उम्र, धर्म, औहदों, जात, रंग से परे है ये। समाज के सभी नियमों से उपर। हर मोह से परे। हां मोह प्रेम नहीं है। 

प्रेम या प्यार, किसी को सुख देने की कोशिश है। मोह सुख प्राप्त करने का जरिया। 

हां प्यार में आंखें हर पल प्यार को ढूंढेंगीं। अजीब सी बेचैनी भी होगी। और अगर ये एक तरफा है तो कुछ न कह पाने की खलिश भी रहेगी।  

लेकिन प्यार एक एहसास है और उस एहसास को जाहिर किया जाए ये जरूरी नहीं। उस एहसास में किसी को बांधने की कोशिश की जाए ये बेवजह है। 

बंधन हमें जिम्मेदारियों से बांधते हैं, प्यार हर रूप में आज़ादी देता है। जिम्मेदारियां गलत नहीं लेकिन प्यार में ये खुद ब खुद निभ जाती हैं, निभानी पड़ती नहीं हैं। 

जहां, जब और जैसे ही हम प्यार से रिवायती होते हैं, जैसे जैसे हम उसे संसार के बनाए नियमों में जकड़ते जाते हैं, वैसे वैसे प्यार नमी खोता जाता है। बेड़ियों में कैद हुआ प्यार ठीक उसी बंजर धरती सा होता है, जिसे अब शायद बारिश का इंतजार भी नहीं । 

प्यार के इस खूबसूरत से एहसास को बिना मोह के जीने में ही अनंद की अनुभूती है। ये एहसास आपको खुबसूरत बनाता है। खुद पर इतराने का मन करता है। गाना गाने का मन करता है। ये आपके मन की पाकीज़गी को कायम रखता है। लोगों को समझ न आने वाला ये प्यार निस्वार्थ होता है। जिससे प्यार है उसे सिर्फ सुख देना है, उससे कोई कामना नहीं रखनी। इसलिए तो कहती हूं जो बंधन में बंध गया वो प्यार नहीं मोह है। 

इस प्यार में कुछ खुद ब खुद मिल जाए तो समेट लो, भर लो अपनी झोली। लेकिन नहीं मिले तो गम न करो, क्यों की ये तो है सिर्फ देने के लिए है। राधा और कृष्णा का प्यार हो या फिर मीरा और कृष्णा /या अंग्रेज़ी की सैंकड़ों क्लासिक नोव्लस में लिखा गया प्यार, रोमियो जूलियट से लेकर प्राईड एंड प्रेजुडिस के elizabeth और मिसटर डार्सी का प्यार। या कई ऐसी कहानियां जैसे ढोला मारु और हीर रांझा जो प्यार की मिसाल माने जाते हैं। 

प्यार एक ताकत भी है। और होना भी चाहिए जो आपको कमजोर बना दे वो प्यार नहीं मोह है। जो आपको पीछे खींचे वो प्यार नहीं। जिद्द है। 

प्यार तो मित्र के जैसा है, जो आपकी खुशी में खुश है, जो आपके साथ में सराबोर है, जो आपकी ज़रूरत है मजबूरी नहीं, जो आपके इर्द गिर्द है हल पल फिर भी आप आज़ाद हैं। प्यार दिशा दिखा सकता है, प्यार राह बन सकता है।

लोग कहते हैं प्यार कई तरह का होता है, नहीं प्यार तो प्यार है हां रिश्ते कई तरह के होते हैं। रिश्ते जो समाज ने बनाएं, वो बंधन जो प्यार को अलग अलग दायरों में बांधते हैं। किसी में आदर और सम्मान का रुप ले लेता है प्यार, तो कहीं ममता और दोस्ती का। लेकिन इन सब में स्वार्थ छिपा है। ऐसे देखा जाए तो बिना दायरों में बंधा प्यार, या फिर आजकल की भाषा में कहें तो no commitments attached वाला प्यार शायद प्यार का सबसे सुलझा और प्योर प्यार है। जहां जो मिल रहा है उसमें खुश हैं और रोज प्यार बांट रहे हैं। 

हांलकी आम तौर इसे सही नहीं माना जाता, और वो शायद इसलिए क्यों की इंसान सदियों से प्यार को स्वाभाव की जगह सीखने सिखाने वाला चीज़ मानता है। तभी तो शादी कर दो प्यार अपने आप हो जाएगा ऐसे कहा जाता है। 

किसी के साथ रहने से, सालों बिताने से, रिश्ता निभाने से प्यार नहीं होता, रिश्ते तो बिना प्यार के भी हमारे समाज में लाखों लोग निभा रहे हैं। लेकिन वो सब स्वार्थ, मोह, और सामाजिक सोच की वजह से है। 

इसिलिए शायद प्यार दोस्ती के इतने करीब है, क्यों की दोस्ती ही वो वाहिद नाता है जो सिर्फ और सिर्फ प्यार की डोर पर खड़ा है, यहां स्वार्थ सिर्फ दोस्त को सुख देने का है। यहां बंधन नहीं, विश्वास है, यहां इच्चाछाएं नहीं अधिकार है, यहां संकोच नहीं, बस प्यार है। 



 




Thursday, May 27, 2021

Relationship


रिश्तों को लेकर लोगों के कई फलसफे हैं। बहुत तरह की सोच है। कोई इनहें बन्धन कहता है तो कोई निभाने की बात करता है। कहीं कज़न्स को पहले सबसे अच्छे दोस्त कहा जाता है, तो कहीं दोस्त भाई या बहन जैसे हैं, ये बोला जाता है। कुछ लोग मानते है की आप जिनके साथ या करीब रहते हैं उनसे रिश्ता बन जाता है, निभ जाता है। शादी, प्यार, परिवार, दुशमनी ये सभी रिश्ते कहलाते हैं। 

तो रिश्ता है क्या? कैसे बनता है? क्या ये सिर्फ मेरी और तुमहारी ज़रूरतों के आधार पर बना? या इसका कोई और मूल है। और अगर है तो क्या और क्यों इसे बन्धन कहा जाता है ? क्या बन्धन से आज़ाद होने की भावना खुद ही नहीं जागती? रिश्ता यानी रिलेशनशिप का आम मतलब  है दो या दो से ज्यादा लोगों में किसी तरह का संबन्ध, जुड़ाव या लेनदेन। रिश्ते भी कई तरह के होते हैं। लेकिन हम बात करेंगे उन रिश्तों की जो दिल से जुड़े होते है। 

जिसमें माता. पिता, भाई, बहन, बच्चों  से रिश्ते सबसे पहले हैं, जो लगभग हमेशा सात रहते हैं। जो शायद आपको सुनते समझते हैं। लेकिन इन सभी में हमेशा, हर किसी के साथ ऐसा होता हो - ये कहना गलत होगा। 
ये तो वो रिश्ते हैं जो सिर्शठी ने हमारे लिए तय किए हैं। तो ये तो निभ ही जाते हैं। लेकिन सबसे मुश्किल होते हैं वो रिश्ते जो हम खुद बनाते हैं। कभी समय के बहाव में, तो कभी समाज के दबाव में। मैं बात कर रही हूं शादी के रिश्ते की। इस रिश्ते को जोड़ रहखने में महनत लगती है, और वो दोनो तरफ से चाहिए होती है। 
सिर्फ प्यार नहीं, इज़्जत देना, एक दूसरे का सम्मान, एक दूसरे को समझना दो लोगों के लिए बेहद जरूरी है। ये वो रिश्ता है जहां दो लोग एक साथ आगे बढ़ सकें - एक के लिए दूसरी को रुकना न पड़े - और रुकना पड़े भी तो समझ, प्यार और दोस्ती के साथ। 

बेहद कमजोर ताने बाने पर सजा ये रिश्ता समाज की देन है। अक्सर समाज और परिवार की खातिर हम इसे निभाते भी जाते हैं। किसी मोड़ पर हाथ छूटते नजर आते हैं तो, कई बार मंजिल साफ दिख रही होती है, तब भी, बस हम निर्णय लेने में चूक जाते हैं। क्योंकी शायद हम सवालों से डरते हैं। या शायद खुद से डरते हैं। खास कर तब जब हमने शादी का फैसला खुद लिया हो। हम इस बात से डरते हैं की हमने जो चुना, जो सोचा, जो पहचाना वो घलत कैसे हो सकता है। अपनी गलती पर सवाल किए जाने  से डरते हैं। लेकिन कब तक डरते रहेंगे। जिस दिन इस रिश्ते में शक, तलाक़ और एक दूसरे पर तंज़ कसने की कहानी शुरु होती है उस दिन से ये रिश्ता गलने लगता है। और फिर कुछ समय बाद इसमें कुछ नहीं बचता सिवाए थकान और मायूसी के। 

तो सोचिए किस तरह के रिश्ते में जीना चहते हैं आप - क्या आप बंधन चहते हैं? 






Friday, June 19, 2020

देस्ती क्या है? (podcast)


रिश्तों में रिश्ता है दोस्ती का रिश्ता - लेकिन दोस्ती क्या है? 

खलील गिबरान को पढ़ेंगे तो दोस्ती में मक्सद नहीं होता, सिर्फ प्यार होता है, 
वो भी ऐसा जो जीना सिखाए, मिठास और खुशियों को बांटने वाला प्यार, 
दोस्ती वो एहसास है, जिसमें बिछड़ जाने का दुख नहीं 
दौबारा मिलने की आस है, 
दोस्त वो जो एक दूसरे को जाने पहचाने
बिन मांगे वो देने को तैयार है, 
बिन सोचे वो आपके साथ है, 
वो आईना है आपकी गलतियों का 
वो साथ भी है बचपन की शरारतों का, 
दिल का सूकून है उसकी बातों में,
लेकिन फिर भी ना कोई वादा है, न दावा है 
खलील कहते हैं दोस्ती जरूरत है, मगर बंधन नहीं। 

महान फिलोसफर एरिस्टॉटल ने भी दोस्ती पर अपने विचार रखे हैं, 
उनका कहते हैं एक अच्छी ज़िन्दगी में बा मानी और सदा के लिए रहने वाली दोस्ती का होना ज़रूरी है। 
उनके हिसाब से दोस्ती तीन तरह की होती है 
- दो किसी घटना या परिस्थिती से जन्म लेती है और तीसरी खूबियों और अच्छाई से। 
पहली है ज़रूरत के लिए की गई दोस्ती, यहां प्यार नहीं है, 
सिर्फ फायदा उठाना परम है, बड़ी उम्र के लोग अक्सर इसी तरह की दोस्तियां करते हैं, 
ये दोस्ती कम और व्यापार ज्यादा है। अगर आपने महाभारत देखी या सुनी है तो करण और दुर्योधन की दोस्ती इसी का उदाहरण है। 

दूसरी दोस्ती होती है बचपन की, शरारतों की दोस्ती, इसकी भी उम्र ज्यादा नहीं होती। अब इसका मतलब ये कतेई नहीं है की बचपन की दोस्ती चलती या टिकती नहीं है। ये दरअसल ऐसी दोस्ती है जो, वक्ति तौर पर खुशी पाने के लिए की जाती है। जब आदमी के विचार बदलते हैं, या फिर वो उस चीज़ की तरजीह देना बंद कर देता है। तो ये अपना अस्तित्व खोने लगती है। 

तीसरी तरह की दोस्ती सबसे खूब होती है। इसे बनने में समय लगता है क्यों की ये अच्छाइयों, खूबियों पर और दिल की गहरायों पर बड़ी होती है। इसे कहते हैं - friendship of the Good - जिसका आधार दोस्त की अच्छाइयों को जानना और उन्हें सरहाना है, उसकी गलतियों से उसे उबारना है, बड़े ज़र्फ और भरोसे से इस तरह की दोस्ती में दोस्त आगे ही बढ़ते हैं और बहतर ही करते हैं। इसमें जो ज़रूरत पूरी होती है और जो खुशी मिलती है वो पहली दो तरह की दोस्तियों से नहीं मिलती। 

अब आप सोचें कौन सी दोस्ती आपकी ज़िन्दगी में कैसी है और आप उसपर किताना समय और दिमाग लगाना चाहेंगे। क्यों की दिल तो सिर्फ एक ही तरह की दोस्ती में लगता है। और हां, प्यार दोस्ती नहीं, दोस्ती प्यार है फर्क पर गौर करें। प्यार तो हर रिश्ते का आधार है। वो अलग से कोई रिश्ता नहीं , हां अक्सर हम प्यार से जुड़े संबंधों को रिश्तों में बदल देते हैं। प्यार सर्वोतम है। किसी एक के लिए नहीं, कुछ के लिए नहीं सभी के लिए, पूरी धरती के लिए। और अच्छी और सच्ची दोस्ती की नीव है प्यार। 
 

खुद से रिश्ता (Podcast)


रूह-ए-ज़िन्दगी के इस नए सफर में आपका स्वागत है, यहां हम रिश्तों की गुथ्थियां सुलझाते हैं, उनके माएने समझने की कोशिश करते हैं। 

जिन्दगी में कुछ हादसे ऐसे होते हैं जो आपको दहला देते हैं। सोचने पर मजबूर कर देते हैं। ऐसा ही एक हादसा कुछ दिन पहले हुआ और मेरे रौंगटे खड़े हो गए। सवाल एक ही था - क्यों? और इस क्यों का जवाब किसी के पास नहीं है। इस लिए आज हम बात करेंगे खुद से खुद के रिश्ते की। 

सबसे पहले तो ये समझना जरूरी है की हमारा अंतर बेहद गहरा है, उस गहरे अंतर में बार बार गोते लगाने पर ही आत्मा और सच्चाई का रास्ता मिलेगा। एक एक कर कमल फूल की पंखुड़ियों की तरह आपको अपने अंतर की पर्तें खोलनी होंगी। तभी आप खुद से रिश्ता बनाने की ओर आगे बढ़ेंगे। 

कई बार खुद की तलाश करते करते हम एक ऐसी राह पर निकल जाते हैं, जहां एक नया सवाल जन्म ले सकता है। जिसके साथ खालीपन का एक एहसास भी पनप सकता है - Victor Frankl की Man's search for meaning में इस existential vacuum को समझाया गया है। खुद को व्यर्थ और जिन्दगी को बेमतलब समझना। और इसकी जड़ इस बात में है की आज या तो हम वो करना चाहते हैं जो दूसरे लोग कर रहे हैं, या फिर वो जो दूसरे लोग चाहते हैं की हम करें। और हम किसी न किसी तरह की लत के शिकार हैं। जिस वजह से हमारी खुद की आवाज़ हमारे तक नहीं पहुंचती। और इससे मिली हताशा, यहां से अक्सर डिप्रेशन की राह पर चला देती है। 

ऐसा न हो इसलिए जिन्दगी के माईने तलाशना, उसका मक्सद जानना जरुरी लगने लगता है। और हक्कीत तो ये है की ज़िन्दगी सबके आगे अलग मसले लेकर आती है, हर किसी के लिए चुनौतियां फर्क हैं, हर एक का माहौल अलग है। तो जाहिर है हर एक के लिए जिन्दगी के माईने भी अलग ही होंगे। 

खुद से खुद को जोड़ने की सोच जैसे बुनियादी बदलाव के साथ साथ हमें ये जानने की भी ज़रुरत है की,
ये माईने नहीं रखता की हम ज़िन्दगी से क्या चहते हैं, बलकी खोज इसकी करनी है की ज़िन्दगी हमसे क्या चाहती है? और वो जो चाहती है क्या वो काम हम पूरे धर्म और सच्चाई के साथ कर रहे हैं। ज़िन्दगी जो काम हमारे आगे ला रही है, वो कर्म की तरह करते जाने हैं, बिना ये सोचे की इससे क्या हासिल होगा। समस्याओं के हल निकालने हैं पुरी निश्ठा के साथ। इसलिए हर किसी के लिए ज़िन्दगी का मतलब अलग होता है। 

तो खुद को तलाशने का रास्ता है क्या? अंतर मन में गोते लगाएंगे कैसे? तो बड़े बड़े ज्ञानी कह गए हैं। 
जितना अपने अंदर झाकना है न,  उतना बाहर की दुनिया के लिए काम करो, खुद से, मैं से उपर उठो और करुणा, प्यार की राह पर चलते हुए जिन्हें जरुरत है उनकी मदद करें, लोगों की सहायता करें, अपने हाथों को दूसरों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रखें। 
खुद से खुद का रिश्ता उतना बढ़ेगा जितना आप बाहर से अपना रिश्ता मज़बूत करेंगे। अहिंसा, सत्य, त्याद, क्रोध न करना, निन्दा न करना, दया भाव, क्षमा, धैर्य, सुख का आकर्शण न होना, अहंकार न करना, ये सब इस बाहरी दुनिया में मज़बूती से लोगों की सहायता करने के लिए ज़रुरी हैं। और यही सब आपकी मुलाकात खुद से करा सकता है। इस खुद से मिलिए धीरे धीरे एक एक परत खोलिए और एक ऐसा रिश्ता बनाईए जो मन को हमेशा शांत रखे। 



  

Tuesday, May 12, 2020

Driving Dreams - Advice

This was one of those days when I used to do morning shift and had got delayed in office, I knew to get a cab at 6:30pm would be tough. Whenever I have left office after 5pm, it has taken me more than a half-hour to get a taxi. I have a daughter to get back to, she starts asking for me after 4:30pm. I reached my office gate in lower Parel, the corporate office hub in Mumbai. But it was probably my lucky day, the first cab that came was ready to take me to Navi Mumbai.

Dawn was meeting dusk, I could feel the fresh sea breeze on my cheeks, the "Kali Peeli" taxi was running faster than I remember they could. We were on the highway to Navi Mumbai, when my driver received a call. He cut the bell twice, but the caller wasn't getting the hint. He kept calling again and again. Courteously he asked me if he could take that call. I said, "Yes, of course, if it's important", having said that I got back to listening to my songs. He quickly finished his call, and we were on the road again.
Just about two-three minute later, the driver looked back, as if trying to gather some courage to ask something. I asked him "Kya Hua Bhaiya? " he immediately said, "App se ek advice leni thi madam." I wasn't too sure why he wanted advice from me, but I decided to listen. So, got my earplugs out and was all ears to him, "Haanji Poochen".

He began by telling me his name, he was Rahim and belonged to eastern UP. He continued and said to me that the man on the phone is asking him to take a loan on his behalf for a car that he wants to buy. He would run it as a Taxi in Mumbai. I asked him, do you know him, is he your relative? Rahim said this person is known to someone in the village, but he doesn't know him so well; also, he was confused if he should go ahead with this or not.

He then went on to tell me his story, Rahim has a daughter who is studying in class 12th and wants to become a doctor. He came to Mumbai when he was 17 as old as his daughter is now. Rahim learnt driving while working as a helper in a garage. At 18 he got his licence and was lucky to get the job of a private driver to a government official.

As he started earning good money, he bought a Kholi in Mumbai. He had two younger brothers, and he wanted them to study and work in the city. He made arrangments for both of them to come to Mumbai. The youngest one went to school, but the middle one would run off from school every now and then. He didn't want to study but was interested in driving. The youngest one did his necessary studies and took to tailoring. He was so good that designers come to him to get their garments stitched. He told me his dream of educating his brothers didn't come through, but he will fulfil his daughter's dream. He is working hard day and night to earn money for her admission in a medical college.

All this brought us back to the fellow on the call who wants him to take a car loan. Listening to him and his dreams, I told him that he should not take this loan. One, because he doesn't need it, two he might need to take a loan for his daughter's admission and three one should be careful because if something happens to the car and this fellow runs away, for example after an accident, then he would be dragged into it.

He seemed to agree with my advice and said something that struck me, "Waise bhi hamare dharm waalon ko phasaane ke bahane dhondte hain aaj kal."

I didn't say a word after that, I did not even reassure him that no its not true, everybody is not the same. I don't know why, but I felt guilty. He believed in me, wanted my advice, and there is this feeling within him that has developed over the past few years, and I can really not do much about it. Over the years, minds have been groomed to think in a particular way, the privileged majority is bragging and basking in their own glory. Anybody who talks about equality and secularism is an anti-national liberal. The counter-arguments of most of the discussions are rooted in history. The history which is not understood with an open mind and heart. All those who came and stayed here this land belongs to them, all of us who live on this land today called India, belong here, irrespective of the religion, caste, creed we follow. Isn't it simple? Can't we just be human?

"Madam, bataiyega kaunsi building," his voice got me back to where I was. I got down from the cab, gave him money, he said "Aapka bahut shukriya meri uljhan door karne ke liye."





Tuesday, February 25, 2020

My Domestic Help - Life of Illegal Bangladeshi Women Immigrants



To begin with, a disclaimer: one: I am not talking about Bangladeshi refugees in Assam, Tripura or West Bengal, two: I am not speaking in favour or against any act or issue.

The story purely reflects on the plight of Bangladeshi women who travel
thousands of miles as illegal immigrants, mostly with their husbands to big Indian cities for work. Making their way through jungles, crossing the IB border by bribing the BSF guards, the rate is 13 thousand rupees per person. With the help of middlemen, they reach Kolkata and get into a train to make it to cities like Mumbai, Delhi and Bangalore where men work as construction labour and women work in residential areas as housemaids. 

Most of them leave their children behind in Bangladesh. They earn here, save some and send some money to the caretakers of their children. Their children study in English medium schools' back home in Bangladesh. Even if the child is born during their stay in India, there are no intentions to keep the child here, as it would increase their cost of living. They visit their country only once every two or sometimes three years. Mobile phones and what's app have shrunk the world, but the fact is their kids grow up without the physical presence of their parents. 

These Bangladeshi couples mostly stay in the outskirts of the satellite towns around the metro cities. These women work for 14 hours a day going to 8 to 9 houses on an average, earning anywhere between 20 to 30 thousand a month. Cleaning, Sweeping, Cooking are their primary job functions. They by far the most diligent workers I have come across. Most of them want to learn and upgrade their style of living to what they see here in India.

We hired our first Bangladeshi maid Noori, in 1998, in my parent's house in Delhi. She wanted her son to be an engineer, so she came to India alone, after her husband had passed away. She stayed in Seelampur, Delhi and used to travel all the way to Anand Vihar for work. Short, fair and underweight, Noori wore salwar kameez to mix well in the general public of Delhi. Her biggest problem was, language she could hardly understand Hindi and the Bengali she spoke was difficult for us to understand. For about a year, our conversation with her was two to three words and a lot of sign language. Noori would send more than 50% of what she earned to her son, who lived in a hostel in his school in Dhaka. In the early years of her stay in India, I remember there use be raids in Seelampur after any unrest or blast in any part of India. Noori would stay back in our colony and wait for things to normalise. During this time, my mom would strike little conversations with her, Noori would speak slowly and try to use Hindi words, while mom would speak loudly in broken sentences trying to make her understand. I would have fun listening to it. All the raids and initial trouble did not deter Noori from her goal, she wanted her son to study well, which he did. About 3years ago he completed his education in computers. Though he is still looking for a job. Noori, who was waiting to finally reunite with him, continues to work at my parent's place in Delhi. She has just recovered from jaundice, and her landlord in Sleempur asked her to move out due to the CAA NRC issue. All the families that Noori worked for, collectively paid her hospital bills and have helped her find accommodation nearby. Now she is waiting for her son to get a job so that she can go back Home.   


My second Bangladeshi maid was hired in Kharghar, Mumbai, in 2007.
Dolly, had three children, two girls and one boy. She used to stay in a village near Kharghar with her husband, sister and brother in law. Tall, dusky and very hard working Dolly picked up Hindi very quickly, and she would love wearing churidar kurta's she said, she felt free in it. Her husband used to work as labour in Panvel. Kharghar is full of middle and upper-middle-class professionals. As the area developed, the demand for maids grew.

Our third Bangladeshi maid was our cook, Sweety, Dolly introduced her to me after I gave birth to my daughter. Sweety came from a relatively affluent family in Bangladesh. Fair, round face, fit and rather pleasant to look at Sweety was here to earn money to build her business and marry her daughters. She wanted to start a fish farm in her land. Land on which her family pursed agriculture. She had 3 daughters and was trying for a son when she began working at my house. Her husband was a lazy fellow and didn't go out to do much work, but Sweety being a cook would earn a lot. Even Dolly's husband was a notorious character. Both these women would work through the day, and one could see them managing work here and demands of family and children back in Bangladesh.

Many times I could figure out they have had a fight with their husbands, Fights, in which they got beaten up. When it would go beyond tolerance, they would cry and share their stories with me. Living away from children, working for hours with just two days off in a month, sometimes they would take glucose drip and come to work, with all this also life was peaceful for them till Kharghar got its new big police station in 2014. 

The police station got more police personnel for the area. The raids which were few and rare became frequent. Every now and then one would hear about police doing night raids and picking up a bunch of Bangladeshi immigrants. Then, they would pay about anywhere between 5 to 50 thousand rupees per person and come back to work a few days later.
Dolly escaped two such raids while she was working with me, in the third one her husband got arrested. She did not have enough money to get him out. It took her about two months to get that money and facilitate his release. After which, the family decided to leave.

One year later Dolly came back, this time alone to earn some more money as her daughters were now of marriageable age (14 and 15). She worked through the day and till late evening, frequently changed the location of her stay to avoid police. After completing her work in all the houses, she would come to my house clean up, change clothes and then take care of my daughter as I would finish my office work. I was lucky to get a 6-month half-day office after my daughter was born. Dolly completed her second stint of about 2 years, once the wedding dates were fixed, she went back home. Hopefully for good.  

An illegal immigrant in India is a foreigner who has entered India either without valid documents or who initially came with valid documents but overstayed beyond the permit.
My cook Sweety had come in the right way but stayed back. Also, it was not the first time she was here, she was born in India and had spent a few growing up years in Mumbai with her parents. That's why her Hindi was excellent, and she could even understand Marathi. She was professional in her approach and enjoyed cooking. She would try new dishes, learnt different Indian styles, would try to blend them with her style. Mostly dressed up in crisp salwar kurta, Sweety would leave the kitchen spic and span after work. She got her Adhaar, pan card and a bank account in place, so she hardly had to face the police ever. Her personal life was in doldrums, though. Her husband indulged in an extramarital affair here in India. When she got to know about it, she sat at home, refusing to go to work, he would beat her for doing this. One day after a scuffle she came crying to my place, with wounds on her face and marks on her back, she was beaten up with a leather belt. I took her to the doctor, after which I called her husband and threatened him that I would get him arrested. 

A few months later, Sweety was ready to leave for Bangladesh. She was pregnant with her fourth baby. Being extremely goal-oriented, in her work stint of about 5 years here she constructed her house, made her fish farm and got her eldest daughter married back home, all with the money she earned. Nearly a year later, I got to know that her fourth child was also a girl who didn't survive. Sweety is back in Kharghar this time alone to earn more so that she can get her other two daughters married. 
My fourth Bangladeshi maid - Panna, what an amazing girl, she is not even 20, small, swift,  and already has three kids. The youngest one was less than a year old when she started working for me, he was born here. Her husband though much older than her, would take care of her. Her life became miserable after the day Amit shah announced a nationwide NRC and exclusion of Muslims from CAA. As protests grew, the situation became tense. 

Some of these women working in our area would meet up every evening to get the latest update. Police started to crack down in regions like Mera road, Bhayender, Panel and Navi Mumbai. There were reports that Bangladeshi workers are being arrested from outside the housing societies in Mera Road. Rumours that police are giving 5000 rupees to those who will inform them about the Bangladeshi families in the vicinity, disturbed them more. 

Amid all this Panna with her family decided to leave for Bangladesh. They were told that Bangladesh is sealing its borders so they should reach their village before that happens. Panna is not the only one, others have also packed their bags and have left for Bangladesh. After 4 days of intense travel, from train to bus to walk to the border and through the forest, with a one-year-old child, Panna managed to reach her village. Her mother, who has stayed back to work for some more days, before she packs her bags, sounded relieved when she called to inform me that Panna has reached home safely. 

There are certain Myths about these immigrants that I would like to break here, 
Myth 1. They come to India and eat into opportunities that Indians are supposed to get. 
No, there is enough demand for a workforce in the jobs they do. If we speak about housework only most of the Indian maids have hang-ups in doing a lot of work that these Bangladeshi maids agree to do. Also, since the day, these maids have started leaving. There is a maid crisis in the area. Now don't give me an argument that in the US and Europe people do their own chores, we all know life is different there.

Myth 2. An IIT kid argued with me about how Bangladeshi immigrants are eating into our resources. 
Now I understand that the pressure on the system, water and electricity, increases but they also contribute to our consumption economy. They are not getting any aids, and they cannot take benefits of any government facilities. If only they could come here and work with a working visa like our educated engineers do when they go to the US etc. things would be different for them. The problem is these people get permit only for 3months which is not enough to pursue any job.
Also, most of them do want to eventually go back to Bangladesh. Bangladesh is one of the fastest-growing economies of the region, with the highest population of freelance IT professionals and educated skilled labour below the age of 25. All these factors have led to a decline in the number of immigrants coming to India for work.