रिश्तों को लेकर लोगों के कई फलसफे हैं। बहुत तरह की सोच है। कोई इनहें बन्धन कहता है तो कोई निभाने की बात करता है। कहीं कज़न्स को पहले सबसे अच्छे दोस्त कहा जाता है, तो कहीं दोस्त भाई या बहन जैसे हैं, ये बोला जाता है। कुछ लोग मानते है की आप जिनके साथ या करीब रहते हैं उनसे रिश्ता बन जाता है, निभ जाता है। शादी, प्यार, परिवार, दुशमनी ये सभी रिश्ते कहलाते हैं।
तो रिश्ता है क्या? कैसे बनता है? क्या ये सिर्फ मेरी और तुमहारी ज़रूरतों के आधार पर बना? या इसका कोई और मूल है। और अगर है तो क्या और क्यों इसे बन्धन कहा जाता है ? क्या बन्धन से आज़ाद होने की भावना खुद ही नहीं जागती? रिश्ता यानी रिलेशनशिप का आम मतलब है दो या दो से ज्यादा लोगों में किसी तरह का संबन्ध, जुड़ाव या लेनदेन। रिश्ते भी कई तरह के होते हैं। लेकिन हम बात करेंगे उन रिश्तों की जो दिल से जुड़े होते है।
जिसमें माता. पिता, भाई, बहन, बच्चों से रिश्ते सबसे पहले हैं, जो लगभग हमेशा सात रहते हैं। जो शायद आपको सुनते समझते हैं। लेकिन इन सभी में हमेशा, हर किसी के साथ ऐसा होता हो - ये कहना गलत होगा।
ये तो वो रिश्ते हैं जो सिर्शठी ने हमारे लिए तय किए हैं। तो ये तो निभ ही जाते हैं। लेकिन सबसे मुश्किल होते हैं वो रिश्ते जो हम खुद बनाते हैं। कभी समय के बहाव में, तो कभी समाज के दबाव में। मैं बात कर रही हूं शादी के रिश्ते की। इस रिश्ते को जोड़ रहखने में महनत लगती है, और वो दोनो तरफ से चाहिए होती है।
सिर्फ प्यार नहीं, इज़्जत देना, एक दूसरे का सम्मान, एक दूसरे को समझना दो लोगों के लिए बेहद जरूरी है। ये वो रिश्ता है जहां दो लोग एक साथ आगे बढ़ सकें - एक के लिए दूसरी को रुकना न पड़े - और रुकना पड़े भी तो समझ, प्यार और दोस्ती के साथ।
बेहद कमजोर ताने बाने पर सजा ये रिश्ता समाज की देन है। अक्सर समाज और परिवार की खातिर हम इसे निभाते भी जाते हैं। किसी मोड़ पर हाथ छूटते नजर आते हैं तो, कई बार मंजिल साफ दिख रही होती है, तब भी, बस हम निर्णय लेने में चूक जाते हैं। क्योंकी शायद हम सवालों से डरते हैं। या शायद खुद से डरते हैं। खास कर तब जब हमने शादी का फैसला खुद लिया हो। हम इस बात से डरते हैं की हमने जो चुना, जो सोचा, जो पहचाना वो घलत कैसे हो सकता है। अपनी गलती पर सवाल किए जाने से डरते हैं। लेकिन कब तक डरते रहेंगे। जिस दिन इस रिश्ते में शक, तलाक़ और एक दूसरे पर तंज़ कसने की कहानी शुरु होती है उस दिन से ये रिश्ता गलने लगता है। और फिर कुछ समय बाद इसमें कुछ नहीं बचता सिवाए थकान और मायूसी के।
तो सोचिए किस तरह के रिश्ते में जीना चहते हैं आप - क्या आप बंधन चहते हैं?
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