समाज को झकझोरने वाली इस मुहिम ने कई
महिलाओं को ‘आवाज़’ दी ।
सबसे बड़ी बात ये, कि औरतों ने, पढ़े-लिखे
समाज में सालों से जो ज्यादती महिलाओं के साथ हो रही थी उसे सामने रखा,
कई घटनाएं ऐसी हैं जिनके बारे में लोगों को पता था, कई नाम ऐसे सामने आए जिन्हें बतौर “predators” जाना जाता रहा है, लेकिन आजतक किसी ने आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं की थी।
मुझे लगता है, अब काफी हद तक न्यूजरुम में, दफ्तरों में और सेट पर आदमी कुछ भी ऐसा करने या बोलने से
पहले सोचेंगे
समाज की नींव जब इस कदर बिगड़ी हो, तो उसे ठीक करने के लिए इस तरह के मंथन की जरूरत होती ही
है
लड़कियों को हमारे समाज में एक वस्तु माना
जाता है, कमअक्ल माना जाता है, डिपेंडेंट की श्रेणी में रखा जाता है, इसलिए खुद को ‘Prove’ करने की होड़ में सालों से ‘Harassment’ सह रही हैं।
#Metoo इंसाफ पाने का शॉर्ट कट तो साबित नहीं हुआ, लेकिन आवज़ उठी तो सिस्टम सचेत हुआ। कहां लिखा है कि इंसाफ पाने लिए सालों
चक्कर काटना और दिमागी परेशानी सहना जरुरी है और ऐसे ममलों में सीधे रास्ते से इंसाफ वैसे भी कम ही मिलता है।
इस दौरान एक बड़ा सवाल, हर केस के साथ ये उठाया गया की - ये महिलाएं पहले क्यों पुलिस
के पास नहीं गईं?
मुझे इस सवाल पर हैरानी होती है, क्यों की इस रूड़ीवादी, पुरूष प्रधान मान्सिक्ता वाले समाज में ये बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए की देश में आज भी ऐसी घटनाओं को लेकर पुलिस के पास जाना कुंए में कूदने समान है। और यहां लड़कियों को बचपन से ही चुप रहना और सहना सिखाया जाता रहा है।
मुझे इस सवाल पर हैरानी होती है, क्यों की इस रूड़ीवादी, पुरूष प्रधान मान्सिक्ता वाले समाज में ये बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए की देश में आज भी ऐसी घटनाओं को लेकर पुलिस के पास जाना कुंए में कूदने समान है। और यहां लड़कियों को बचपन से ही चुप रहना और सहना सिखाया जाता रहा है।
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एक छोटा सा
किस्सा - हम तीन सहेलियां ऑटो में
कॉलेज से घर जा रहे थे, रात 10 बजे का वक्त था, हमारे पीछे एक कार लग गई जिसमें कई लड़के थे, वो ऐसी बातें कह रहे थे जिन्हें सुनकर हम सिहर रहे थे, हमने ऑटो वाले अंकल से कहा पुलिस स्टेशन ले चलें, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया और बोले – ‘इधर कुआं है तो उधर खाई, मैं आपको घर छोड़ता हूं, डरो मत।‘
लेकिन ये बात कोई आदमी/लड़का नहीं समझ सकता, खासकर वो जिसको बचपन से ये जताया गया हो कि औरत सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी
जरूरत की वो चीज है जिस पर तुम हक से कुछ भी कर सकते हो।
#Metoo का अगला कदम उठ चुका है, कई मामलों में कानून का दरवाजा खटखटाया जा रहा है, पुलिस में FIR दर्ज किए जा रहे है, NCW में बात हो रही है।
#Metoo में जो महिलाएं अपनी
कहानियों के साथ सामने आ रही हैं वो सिर्फ बड़े शहरों से नहीं हैं वो देश के हर
कोने से हैं छोटे-बड़े हर तरह के शहरों से हैं। यहां भी एक और बात है जिसपर गौर फर्माना जरूरी है, छोटे शहरों से आईं लड़कियां किसी भी ऐसी वजह से अपने घर लौट कर किसी अंजान खूटे से बांधे जाने को तैयार नहीं थी। उनहें अपनी तरक्की की राह हर मुशकिल से लड़ कर बनानी थी। इसलिए वो सालों सहती रहीं। ये गलत नहीं है की कई लड़कियों ने सीनीयर आदमियों के साथ हदें पार करने को अपने लिए सीढ़ी बना कर इस्तेमाल भी किया। लेकिन ये किस्से हर जगह इक्का दुक्का हैं और हर लड़की को बुरी निगाहों से देखना औऱ अपनी जागीर समझना आम रहा है।
#Metoo एक आवाज़ है उस समाज में
समानता और सम्मान पाने के लिए जहां सतही तौर ऐसा लगता है कि औरतों को अधिकार हैं
आज भी, इस आंदोलन के बावजूद कई औरतें चुप हैं, जानना चाहेंगे क्यों ?
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क्योंकि
उन्हें बचपन से चुप रहना, झगड़ा ना करना सिखाया गया है, ऊंची आवाज़ में बोलना तुम्हे शोभा नहीं देता, ये बताया गया है
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उन्हें हर कदम
पर ये जताया गया है कि तुम कमजोर हो और लड़की हो, इसलिए तुम ज्यादा कुछ नहीं कर सकती
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कदम कदम पर
दफ्तर में, घर में, उन्हें ये कहा गया कि ‘ऐसा तो
होता है, भूल जाओ और आगे बढ़ो’
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